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मंगलवार, 9 जुलाई 2013

इंसान की तरह हैं डॉल्फिन

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भारत सरकार ने माना है कि डॉलफिन एक ऐसा जीव है जिसकी समझ बूझ इंसानों से तुलनीय है, इसलिए उन्हें भी जीने के वैसे ही अधिकार मिलने चाहिए जैसे इंसानों को.
भारत से लोग खास तौर से थाईलैंड और सिंगापुर में डॉलफिन पार्क देखने जाते हैं. अधिकतर लोगों ने सफेद और काली चमड़ी वाले इन समुद्री जानवरों को टीवी विज्ञापनों या फिर फिल्मों में ही देखा है. हाल ही में भारत में डॉलफिन पार्क बनाए जाने की योजना बनी. इन्हें राजधानी नई दिल्ली, मुंबई और कोच्चि में बनाया जाना था. लेकिन कोच्चि में डॉलफिन पार्क का निर्माण शुरू होते ही पर्यवारणविदों ने प्रदर्शन शुरू कर दिए. वे इन जानवरों को मनोरंजन का जरिया बनाने के खिलाफ थे. इन प्रदर्शनों को देखते हुए सरकार ने अब डॉलफिन पार्क बनने पर रोक लगा दी है.
'नॉन ह्यूमन पर्सन'
भारत सरकार ने डॉलफिन को नॉन ह्यूमन पर्सन या गैर मानवीय जीव की श्रेणी में रखा है. यानी ऐसा जीव जो इंसान न होते हुए भी इंसानों की ही तरह जीना जानता है और वैसे ही जीने का हक रखता है. इसके साथ ही भारत दुनिया का चौथा ऐसा देश बन गया है जहां सिटेशियन जीवों को मनोरंजन के लिए पकड़ने और खरीदे जाने पर रोक लगा दी गयी है. भारत के अलावा कोस्टा रीका, हंगरी और चिली में भी ऐसा ही कानून है.
भारत के पर्यावरण और वन मंत्रालय ने राज्य सरकार से हर तरह के डॉलफिनेरियम पर रोक लगाना को कहा है. एक बयान में मंत्रालय ने कहा है, "डॉलफिन को नॉन ह्यूमन पर्सन के रूप में देखा जाना चाहिए और इसलिए उनके अपने कुछ अधिकार होने चाहिए". पर्यावरणविद सरकार के इस फैसले से बहुत खुश हैं. फेडरेशन ऑफ इंडियन एनीमल प्रोटेक्शन ऑरगेनाइजेशन (एफआईएपीओ) की पूजा मित्रा ने डॉयचे वेले से बातचीत में कहा कि इससे भारत में जानवरों को बचाने की मुहीम पर असर पड़ेगा.
परिवार से लगाव
डॉलफिन को अधिकार दिलाने की मुहीम शुरू हुई तीन साल पहले फिनलैंड में. उस समय दुनिया भर से वैज्ञानिक और पर्यावरणकर्ता राजधानी हेलसिंकी में जमा हुए और डिक्लेरेशन ऑफ राइट्स फॉर सिटेशियन पर हस्ताक्षर किए. जल जीवन पर काम कर रही जानी मानी वैज्ञानिक लोरी मरीनो भी वहां मौजूद थीं. उन्होंने इस बात के प्रमाण दिए कि सिटेशियन जीवों के पास मनुष्यों की ही तरह बड़े और पेचीदा दिमाग होते हैं. इस कारण वे काफी बुद्धिमान होते हैं और आपस में संपर्क साधने में काफी तेज भी. उन्होंने अपने शोध में दर्शाया है कि डॉलफिन में भी इंसानों की ही तरह आत्मबोध होता है.
साथ ही वे इतने समझदार होते हैं कि औजारों से काम करना भी सीख लेते हैं. हर डॉलफिन एक अलग तरह की सीटी बजाता है जिस से कि उसकी पहचान हो सकती है. इसी से वह अपने परिवारजनों और दोस्तों को पहचानते हैं. पूजा मित्रा बताती हैं, "वे अपने परिवार से बहुत जुड़े होते हैं. उनकी अपनी ही संस्कृति होती है, शिकार करने के अपने ही अलग तरीके और बोलचाल के भी".
समझदारी का नुकसान
लेकिन डॉलफिन की यही काबिलियत उनकी दुश्मन बन गयी है. वे इतने समझदार होते हैं कि लोग उन्हें तमाशा करते देखना पसंद करते हैं. दुनिया भर में सबसे अधिक डॉलफिन पार्क जापान में हैं. यहीं सबसे अधिक डॉलफिन पकड़े भी जाते हैं. मित्रा बताती हैं कि डॉलफिन को पकड़ने का काम हिंसा से भरा होता है, "वे डॉलफिन के पूरे झुंड को पकड़ लेते हैं, फिर वे मादा डॉलफिन को अलग करते हैं जिनके शरीर पर कोई निशान ना हो और जिन्हें पार्क में इस्तेमाल किया जा सके, बाकियों को अधिकतर मार दिया जाता है".
डॉलफिन खुले पानी में तैरने के आदि होते हैं और रास्ता ढूंढने के लिए वे सोनार यानी ध्वनि की लहरों का इस्तेमाल करते हैं. लेकिन जब उन्हें पकड़ कर टैंक में रख दिया जाता है तो वे बार बार टैंक की दीवारों से टकराते हैं. इससे वे तनाव में आ जाते हैं और खुद को नुकसान भी पहुंचाने लगते हैं. दीवारों से टकराने के कारण कई बार उन्हें चोटें आती हैं या फिर दांत टूट जाते हैं.
यह सब देखते हुए भारत का यह कदम दूसरे देशों के लिए सीख बन सकता है. भारत 2020 तक गंगा में मौजूद डॉलफिन को बचाने की मुहीम भी चला रहा है.
रिपोर्ट: सरोजा कोएल्हो/ईशा भाटिया
संपादन: मानसी गोपालकृष्णन sabhar : dw.de

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