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सोमवार, 26 अगस्त 2013

क्या लुप्त हो चुके जीव कभी वापस लौट पाएंगे?

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लुप्त हो चुके जीव, प्रजातियाँ


लुप्त हो रहे जीवों को हमारी दुनिया में वापस लौटाने की दिशा में कुछ वैज्ञानिक गंभीरता से विचार कर रहे हैं.
लेकिन सवाल उठता है कि क्या यह मुमकिन है और अगर हाँ तो इसका क्या इस्तेमाल होगा.

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माइकल क्रिक्टन के उपन्यास पर आधारित फिल्म दि जुरासिक पार्क लुप्तप्राय प्रजातियों को पुनर्जीवित करने के लिए तकनीक के इस्तेमाल के मुद्दे को सँभल कर छूती हुई लगती है.
स्टीवन स्पीलबर्ग के निर्देशन में 20 साल पहले बनी इस फिल्म में एक सनकी अरबपति की कहानी कही गई थी जो क्लोनिंग के जरिए बनाए गए डायनासोर की रिहाइश वाला एक थीम पार्क रचता है.
कहने की जरूरत नहीं है कि कहीं कुछ गड़बड़ी हो जाती है और इस विचार को जन्म देने वाले लोग अपने जीवन के लिए संघर्ष करते हुए दिखाई देने लगते हैं.
लेकिन इस कहानी को जन्म देने वाले बुनियादी विचार पर कुछ वैज्ञानिक लुप्त हो चुके जीवों को फिर से गढ़ने की संभावनाओं पर संजीदगी से सोच रहे हैं.
इतना नहीं बल्कि उन जीवों के प्राकृतिक आवास को भी नए सिरे से बनाने पर विचार किया जा रहा है.

पारीस्थितिकी तंत्र

लुप्त हो चुके जीव, प्रजातियाँ
साइबेरियाई क्षेत्र के पूर्वोत्तर कोने पर स्थित प्लेस्टोसिन पार्क इसी का एक उदाहरण है.
यहाँ लुप्त हो चुके जीवों के लिए अनुकूल पारिस्थितिकी तंत्र को गढ़ने के सपने को आकार देने की कोशिश की जा रही है.
यहाँ घास का बड़ा मैदान है जिसमें बड़े आकार के शाकाहारी जीव रह सकते हैं जैसे बारहसिंगा, बाइसन जीव और लुप्त हो चुके बड़े रोएँ वाले विशालकाय हाथी.
बारहसिंगा और बाइसन की लुप्त हो चुकी प्रजातियों को पहले से ही दोबारा गढ़ा जा चुका है लेकिन बड़े रोएँ वाले भीमकाय हाथियों ने चुनौती खड़ी कर रखी है.
इन भीमकाय हाथियों की बर्फ में जमी हुई कोशिकाएँ, इनके डीएनए के जरिए नया क्लोन बनाना.
ये ऐसे विचार हैं जो लंबे समय से विज्ञान फंतासियों का हिस्सा रहे हैं लेकिन क्या इन्हें वास्तव में हकीकत की शक्ल दी जा सकती है.
लंदन के नैचुरल हिस्ट्री म्यूज़ियम से जुड़े जीवाश्म वैज्ञानिक प्रोफेसर एड्रियन लिस्टर ऐसा नहीं मानते.
वह कहते हैं, “क्योंकि इन जानवरों के अवशेष हजारों साल पहले नष्ट हो चुके हैं.”

क्लोन तकनीक

लुप्त हो चुके जीव
डीएनए की पूरी संरचना जाने बगैर भीमकाय हाथी या मैमथ का क्लोन तैयार कर पाने की संभावना न के बराबर ही है. हालांकि डीएनए के अवशेष फिर भी कारगर हो सकते हैं.
एक योजना यह भी है कि मैमथ के जीनोम और उसके टूटे हुए तंतुओं को इकट्ठा करके कुछ कोशिश की जा सकती है. ये चीजें उनके अवशेषों के अलग अलग नमूनों से इकट्ठा की गई हैं.
इसके बाद मैमथ के जीनोम की तुलना उसके सबसे करीबी जीवित जानवर यानी एशियाई हाथी से उसकी तुलना करके किसी तार्किक नतीजे पर पहुँचा जा सकता है. शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि इस तुलनात्मक अध्ययन से यह पता लगाया जा सकेगा कि एक मैमथ आखिर किस तरह से मैमथ बना होगा.
इसके बाद वैज्ञानिक एशियाई हाथी के डीएनए का इस्तेमाल मैमथ के डीएनए की जानकारियों में छूट रही कमियों को भरने में करेंगे. यह तकनीक लगभग वैसी होगी जैसी कि जुरासिक पार्क फिल्म में दिखाई गई थी. यही तरीका क्लोन तकनीक से बनाए गए डॉली नाम के भेड़ में अपनाया गया था.
मुमकिन है कि इसके बाद विशालकाय मैमथ दोबारा से रचा जा सके. हालांकि प्रोफेसर लिस्टर कहते हैं कि अभी इसमें कई “अगर और मगर” हैं.
हालांकि जुरासिक पार्क फिल्म की तरह कोई भी डायनोसोरों को वापस लाने की दिशा में गंभीरतापूर्वक विचार नहीं कर रहा है लेकिन लुप्त हो चुके जीवों को वापस लौटने से हमारे पारिस्थितिकी तंत्र पर असर पड़ सकता है. sabhar http://www.bbc.co.uk/

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