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मंगलवार, 29 अक्तूबर 2013

क्या है टेलीपैथिक विद्या?

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टेलीपैथी को हिंदी में दूरानुभूति कहते हैं। टेली शब्द से ही टेलीफोन, टेलीविजन आदि शब्द बने हैं ये सभी दूर के संदेश और चित्र को पकड़ने वाले यंत्र हैं। आदमी के मस्तिष्क में भी इस तरह की क्षमता होती है। बस उस क्षमता को पहचानकर उसका उपयोग करने की बात है।

कोई व्यक्ति जब किसी के मन की बात जान ले या दूर घट रही घटना को पकड़ कर उसका वर्णन कर दे तो उसे पारेंद्रिय ज्ञान से संपन्न व्यक्ति कहा जाता है। महाभारत काल में संजय के पास यह क्षमता थी। उन्होंने दूर चल रहे युद्ध का वर्णन धृतराष्ट्र को सुनाया था।

भविष्य का आभास कर लेना भी टेलीपैथिक विद्या के अंतर्गत ही आता है। किसी को देखकर उसके मन की बात भांप लेने की शक्ति हासिल करने तो बहुत ही आसान है। 

इस तरह की शक्ति जिसके पास होती है मोटे तौर पर इसे ही टेलीपैथी कह दिया जाता है। दरअसल टेलीपैथी दो व्यक्तियों के बीच विचारों और भावनाओं के उस आदान-प्रदान को भी कहते हैं।

इस विद्या में हमारी पांच ज्ञानेंद्रियों का इस्तेमाल नहीं होता, यानी इसमें देखने, सुनने, सूंघने, छूने और चखने की शक्ति का इस्तेमाल नहीं किया जाता। यह हमारे मन और मस्तिष्क की शक्ति होती है और यह ध्यान तथा योग के अभ्यास से हासिल की जा सकती है।

टेलीपैथी शब्द का सबसे पहले इस्तेमाल 1882 में फैड्रिक डब्लू एच मायर्स ने किया था। कहते हैं कि जिस व्यक्ति में यह छठी ज्ञानेंद्रिय होती है वह जान लेता है कि दूसरों के मन में क्या चल रहा है। यह परामनोविज्ञान का विषय है जिसमें टेलीपैथी के कई प्रकार बताए जाते हैं।sabhar ; (वेबदुनिया)

1 Comments:

Pooja ने कहा…

Thank you for sharing very useful information on Essay Hindi

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