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गुरुवार, 14 जुलाई 2022

ब्रह्म का अंड अर्थात ब्रह्मांड

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 अंडा सबसे सुरक्षित होता बच्चे के रहने और पोषण पाने के लिए। इस प्रकार सम्पूर्ण सृष्टि को ब्रह्म का अंड अर्थात ब्रह्मांड कहा गया। जहाँ हर प्रकार के छोटे ,बड़े जीव निवास करते व पोषण पाते है। सूक्ष्म ढंग से मनुष्य एक छोटा सा ब्रह्मांड है, छोटे से अस्तित्व में सघन रूप से समाया हुआ है। 


यह ब्रह्मांड , यह संपूर्ण अस्तित्व और कुछ नहीं मनुष्य का विस्तार ही है यह  जो कुछ बाहर अस्तित्व रखता है, ठीक वही मनुष्य के भीतर भी अस्तित्व रखता है। बाहर के सूर्य की भाँति मनुष्य के भीतर भी सूर्य  है; बाहर के चाँद की ही भाँति मनुष्य के भीतर भी चाँद छिपा हुआ है। महृषि पंतजलि कहते हैं कि - ''सूर्य पर संयम संपन्न करने से सौर ज्ञान की उपलब्धि होती है।


तो उनका संकेत उस सूर्य की ओर नहीं है जो बाहर है। उनका मतलब उस सूर्य से है जो हमारे भीतर है। और निस्संदेह यह केवल सूर्य से ही प्रारंभ हो सकता है, क्योंकि सूर्य हमारा केंद्र है। सूर्य लक्ष्य नहीं है, बल्कि केंद्र है। परम नहीं है, फिर भी केंद्र तो है। 


हमको उससे भी ऊपर उठना है, उससे भी आगे निकलना है, फिर भी यह केवल प्रारंभ ही है ...अंतिम चरण नहीं है। जब महृषि पतंजलि हमें बताते हैं कि संयम को कैसे उपलब्ध हो ,करुणा में, प्रेम में व मैत्री में कैसे उतरे , कैसे करुणावान हो, प्रेमपूर्ण होने की क्षमता कैसे अर्जित करे ।


तब वे आंतरिक जगत में पहुँच जाते हैं। महृषि पतंजलि की पहुँच अंतर अवस्था के पूरे वैज्ञानिक विवरण तक है। सूर्य पर संयम संपन्न करने से, संपूर्ण सौर-ज्ञान की उपलब्धि होती है।'इस पृथ्वी के लोगों को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है।


सूर्य-व्यक्ति और चंद्र-व्यक्ति, सूर्य पुरुष का गुण है; स्त्री चंद्र का गुण है। सूर्य आक्रामक और सकारात्मक है; चंद्र ग्रहणशील और निष्क्रिय होता है। सारे जगत के लोगों को सूर्य और चंद्र इन दो रूपों में विभक्त किया जा सकता है।और हम अपने शरीर को भी सूर्य और चंद्र में विभक्त कर सकते हैं।


योग ने इसे इसी भाँति विभक्त किया है। योग ने तो शरीर को इतने छोटे-छोटे रूपों में विभक्त किया है कि श्वास तक को भी बाँट दिया है। एक नासापुट में सूर्यगत श्वास है, तो दूसरे में चंद्रगता वास है जब व्यक्ति क्रोधित होता है, तब वह सूर्य के नासापुट से श्वास लेता है।


और अगर शांत होना चाहता है तो उसे चंद्र नासापुट से श्वास लेनी होगी।योग में तो संपूर्ण शरीर को ही विभक्त कर दिया गया है ...मन का एक हिस्सा पुरुष है, मन का दूसरा हिस्सा स्त्री है।और व्यक्ति को सूर्य से चंद्र की ओर बढ़ना है, और अंत में दोनों के भी पार जाना है।


प्राणायाम तीन प्रकार के होते हैं। इसमें शरीर को गर्मी देने वाले, शरीर को ठंडा रखने वाले और शरीर को ताकत देने वाले हैं। कई योगासन ऐसे हैं, जो शरीर को अंदर से गर्म रखते हैं। शरीर की इम्यूनिटी को मजबूत करते हैं, जिससे आप सर्दी में होने वाली बीमारियों से बचे रहते हैं।


इसके लिए आप प्रणायाम भी कर सकते हैं, जो सर्दी में खुद को गर्म रखने के लिए बहुत उपयोगी हैं। ठंड के मौसम में सूर्यभेदी प्राणायाम, कपालभाति प्राणायाम करना चाहिए। इससे पिंगला नाड़ी का शोधन होता है। प्राणायाम का नियमित अभ्यास करने से व्यक्ति के कपाल की शुद्धि होती है। 


सर्दी के प्रकोप से खुद को बचाकर रखना है, तो यह बेहद ही फायदेमंद है। इसे करने से जठराग्नि (पेट के अंदर मौजूद शारीरिक ताप, जो भोजन पचाने का काम करता है) प्रदीप्त होती है। इससे शरीर को ऊर्जा की प्राप्ति होती है। इससे भी आप अंदर से गर्म  रहेंगे। 


ऐसा इसलिए, क्योंकि भस्त्रिका प्राणायाम करने से सांस की गति तेज होती है, जिससे शरीर को गर्मी मिलती है। शरीर अंदर से गर्म रहेगा तो आप एलर्जी, सांस से संबंधित रोगों, गले में खराश, सर्दी-जुकाम, खांसी, साइनस आदि कफ उत्पन्न करने वाली बीमारियों से छुटकारा मिलता है।


सूर्यभेदी प्राणायाम का अभ्यास करने से शरीर का तापमान बढ़ता है। इसमें दाहिने नाक के छिद्र से सांस भर कर बाएं से छोड़ते हैं। ऐसा करने से शरीर का तापमान तेजी से बढ़ता है। इस प्राणायाम को कम से कम पांच मिनट करना चाहिए। इसी तरह अश्व चालन आसन का अभ्यास करना चाहिए।


इसमें पैर के पंजे एवं हाथ की हथेलियों के बल पर सामने की ओर देखते हुए फूंफकार वाली गहरी सांस लेते और छोड़ते हुए चलना चाहिए। इस आसन का अभ्यास एक मिनट से अधिक नहीं करना चाहिए। इससे हाथ-पैर के तलवों और अंगुलियों की गलन ठीक होती है। 


इसी तरह षट्कर्म की क्रिया भस्त्रिका करना चाहिए। इसमें लोहार की धौकनी की तरह लंबी और गहरी सांस तेजी से लेना और छोडऩा होता है।इससे शरीर के रोम-रोम में गर्मी पैदा होती है, जो ठंड के प्रकोप से रक्षा करती है।सूर्य भेदी प्राणायाम दायीं नासिका से करते हैं।


दायीं नासिका सूर्य नाड़ी से जुड़ी होती है। इसे सूर्य स्वर कहते हैं। इसलिए इसका नाम सूर्यभेदी प्राणायाम है। इसके नियमित अभ्यास से शरीर के अंदर गर्मी उत्पन्न होती है। इसका सर्दियों नियमित अभ्यास करना चाहिए। इसके अलावा एक ही जगह पर तेजी से कदम चलाते हुए सांस लेना और छोडऩा चाहिए। ऐसा 5-15 मिनट तक करना चाहिए।


सूर्यभेदी प्राणायाम करने का तरीका;-


अपनी आंखों को बंद करके पद्मासन में बैठें। अब दाहिने हाथ की अनामिका एवं छोटी ऊंगुली से बाईं नासिका को बंद करें। दाहिने नाक से सांस लें। दाहिनी नासिका को अपने अंगूठे से बंद करें। ठुड्डी को सीने के पास दबाएं और सांस को कुछ सेकंड के लिए रोकने की कोशिश करें। अब अंगूठे से दाहिने नाक को बंद करके बाईं नाक से धीरे-धीरे सांस छोड़ें। 


भस्त्रिका प्राणायाम से शरीर को गर्मी मिलती है। इन आसनों को पांच मिनट से अधिक नहीं करना चाहिए। सिद्धासन या सुखासन में बैठ जाएं। अब कमर, गर्दन और रीढ़ की हड्डी को सीधा रखते हुए शरीर और मन को स्थिर रखें। फिर तेज गति से सांस लें और तेज गति से ही सांस बाहर छोड़ें। सांस लेते समय पेट फूलना चाहिए और छोड़ते समय पेट पिचकना चाहिए। इससे नाभि स्थल पर दबाव पड़ता है।


कपाल भांति प्राणायाम का एक रूप है जो आपके आंतरिक अंगों को उत्तेजित करता है और तेजी से सांस लेने के माध्यम से आपके शरीर में गर्मी उत्पन्न करता है। यह आपके चयापचय को आपके पूरे शरीर में ऊर्जा जारी करने के लिए बढ़ावा देता है।ध्यान के किसी आसन में बैठ जाएं। 


अब आंखों को बंद कर लें। पूरे शरीर को ढीला छोड़ दें। अब नाक से तेजी से सांस बाहर निकालने की क्रिया करें। सांस को बाहर निकालते वक्त पेट को भीतर की ओर खींचें। ध्यान दें कि सांस को छोड़ने के बाद, सांस को बाहर न रोककर बिना प्रयास किए सामान्य रूप से सांस को अन्दर आने दें। 


योग के आसन करने में कुछ सावधानी बरतने की जरूरत होती है। अगर किसी को उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर) की समस्या है तो उसे इन आसनों को नहीं करना चाहिए। वह गहरी सांस लेकर छोड़ सकते हैं। 


आगे ठंड का मौसम आता तब यह सावधानी रखें। गुनगुने पानी का सेवन करें। पेट साफ न होने से ठंड अधिक लगती है, इसलिए हरी सब्जी का सेवन करें। केसर-कस्तूरी मिला गुनगुना पानी या गुड़ खाकर गुनगुना पानी भी पी सकते हैं। सोंठ और गुड़ मिश्रित लड्डू खाएं।


सर्दी से बचने के लिए करें ये आसन;-


योग करने से शरीर में ऊर्जा का उत्पादन होता है। योगासन ना केवल आपके शरीर को फिटनेस देता है बल्कि यह ठंड से होने वाले सर्दी, जुकाम, बुखार आदि मौसमी बीमारियों से भी निजात दिलाता है साथ ही यह इम्यून सिस्टम को भी मजबूत बनाता है।


आसन हठ योग के अंतर्गत आता है तथा इसके स्वास्थ्य को कई फायदे होते हैं। इसके नियमित अभ्यास से जब शरीर अंदर से गर्म रहता है तो सर्दी की आम समस्या जैसे एलर्जी, सांस से संबंधित रोगों, गले में खराश, सर्दी-जुकाम, खांसी, साइनस आदि कफ उत्पन्न करने वाली बीमारियों में भी राहत मिलती है।


ठंड से बचने के लिए आप सर्वांगासन, चक्रासन, पवनमुक्तासन, धनुरासन, ताड़ासन, पश्चिमोत्तानासन कर सकते हैं। ये सभी आसन शरीर को अंदर से गर्मी रखने के लिए बहुत ही अच्छे माने गए हैं।साथ ही आप कई रोगों से भी बचे रहते हैं, आपका शरीर चुस्त-दुरुस्त बना रहता sabhar Facebook wall kundalni shadana aur yog 

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