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बुधवार, 13 अक्तूबर 2021

बेहया-विनीता अस्थाना

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 बेहया-विनीता अस्थाना

पृष्ठ-155

मूल्य-150 रुपए


एक बड़ा ही विचित्र सा नाम है इस किताब का 'बेहया'। कवरपृष्ठ पर ही एक आधुनिक महिला की तस्वीर है हाथों में जाम, कंधे पर गूदे हुए गोदने जिसपर उड़ती हुई पक्षियों की तस्वीरें। एक नजर में लगता है एक ऐसी महिला पर लिखी किताब होगी जिसमें हया ही न बची हो। पर ऐसा नहीं है। इस किताब के संदर्भ में बेहया का अर्थ है थेथर। 'बेहया'एक पौधा होता है, उसकी खूबी ये होती है कि वो बार बार काटे जाने पर भी खत्म नहीं होता है। नदी, तालाब,गड़हा, गड़ही कहीं पर बिना किसी विशेष रखरखाव के वो उग आता है।इतना थेथर, लथेर होता है 'बेहया'।


          ठीक ऐसे ही इस कहानी की नायिका 'सिया' है एकदम से थेथर।इस किताब के बारे में कुछ लिखने से पहले यह जानना जरूरी है कि यह किताब आधुनिक दौर में कम समय में सफलता के सोपान पर चढ़ती हुई कामकाजी महिला के ऊपर लिखा गया है।जब तक महिला भीड़ में गुम रहती है उसपर कोई ध्यान नहीं देता।पर जैसे ही वो सफल होना आरंभ करती है, साथ में सुंदर है और उसके बोलने का तरीका जुदा है तो लोग उसकी तरफ आकृष्ट होना आरम्भ करते हैं। सिया में यह सारी काबिलियत है।

साथ में वो एक अमीरजादे यश की पत्नी हैं उनके प्यारे प्यारे दो बच्चे हैं। 


कहानी बहुत ही सामान्य तरीके से आगे बढ़ती है। जैसा कॉरपोरेट जगत के ऑफिस का माहौल होता है बिल्कुल वैसा ही माहौल है विनीता जी ने बड़े प्रभावी ढंग से उस माहौल का जिक्र किया है। काम, पार्टी, एक दिन वाला प्यार, ऑफिस आवर्स के बाद वाला मुलाकात,प्रोमोशन का खुमार।


सिया को देखकर ,जिस प्रकार से वो इतनी बड़ी कम्पनी को संभाल रही है कहीं से न लगता उस महिला के जीवन मे कुछ भी एब्नार्मल है। महिलाएं ऑफिस में उनको देखकर जलती हैं। जलने की बहुत वजह है कमाऊ पति, सुंदरता, ऑफिस के मेल मेंबर्स का आकर्षण का केंद्र होना।दबी जुबान से ऑफिस में खुसफुसाहट भी है इतने कम समय मे वो सफल होने के लिए उन्होंने क्या क्या किया होगा।


सिया समझती सब है पर बहुत ही समझदारी से सब कुछ हैंडल करती हैं अनावश्यक वाद विवाद में वो कहीं नहीं हैं।

 सिया के ऑफिस में एक अभिज्ञान हैं, सिया से वो प्यार करते हैं, यह जानते हुए भी की वो शादी शुदा हैं उनके दो बच्चे हैं। कभी कभी सिया को वो फ्लर्ट भी करते हैं।इसके पहले वो उसी ऑफिस में तृष्णा के साथ डेढ़ दिन रिलेशनशिप में रह चुके हैं।अभिज्ञान को सिया के बारे में करीब से जानने का मौका तब मिलता है जब वो किसी काम के सिलसिले में कुछ दिन के लिए बाहर जाते हैं।वहां अचानक एक दिन उनका लैपटॉप पर उनको सिया की डायरी पढ़ने को मिलती है।उस डायरी में सिया ने अपने ऊपर हो रहे टार्चर का विस्तार से जिक्र किया होता है।वो अपनी डायरी में लिखती हैं कि वो सेक्सुअल वायलेंस का शिकार हैं, उनके पति शक करते हैं उनपर, दोनों बच्चों को भी वो अपना नहीं मानते,उनको रोज मारते पिटाते हैं। वो सब कुछ इसलिए बर्दाश्त कर रही होती हैं कि उनके बच्चों के ऊपर कोई गलत प्रभाव न पड़े और शायद एकदिन उनके पति यश यह सब करना बंद कर दें।यह सब जानने के बाद अभिज्ञान के मन मे सिया को लेकर बहुत हमदर्दी है।सिया के मन में भी अभिज्ञान के लिए एक सॉफ्ट कॉर्नर है।आगे चलकर वो अपने पति से अलग हो जाती हैं।ताज्जुब की बात यह ही कि जिसे वो साथ रहकर न सुधार सकीं वो अलग होने के बाद सुधर जाता है।


इस किताब में सिया और अभिज्ञान के बीच 'प्लेटोनिक रिलेशनशिप' का जिक्र है, यह नया है।दोनों की अपनी मर्यादाएं हैं, दोनों में आकर्षण है, प्रेम है पर कुछ है जो इसको और प्रेम से अलग बनाता है।दैहिक आकर्षण नहीं है एक अपनापन है, आदर है। जब कहानी में अभिज्ञान की एंट्री होती है तो सिया के प्रति उनके रवैये को देखकर एक पल को ऐसा भी लगता है आगे चलकर कहानी फ्लर्टी टाइप होगी पर ऐसा नहीं है।


यह कहानी केवल सिया की कहानी नहीं है उन हज़ारों औरतों की कहानी है जो घरेलू हिंसा का शिकार हैं, जो ब्लश और फेस पाउडर के माध्यम से अपने चेहरे पर पड़ी उंगलियों के निशान को मिटा लेती हैं, जो अपने शरीर पर उभरे नीले निशान को गले तक कि कमीज पहनकर ढंक लेती हैं और अपने चेहरे पर मुस्कान का एक लबादा ओढ़ लेती हैं, जो कलाई पर पड़े जले का निशान यह कह कर टाल देती है कि कुकर से सट गया था,जो व्यक्तिगत रूप से किसी से मिलें जुलने के बजाय घमंडी कहलाना पसंद करती हैं, जिनको भय है कि उनके व्यक्तिगत जिंदगी इतनी तहस नहस है कि वो दूसरे के सामने क्या मुँह दिखाएगी, वो दूसरों  की आंखों में अपने लिए हमदर्दी और सहानुभूति न देखना चाहती, जिनको समाज की आंखों में आंखे डाल के कहना है सबकुछ मेरी जन्दगी में आप सब की तरह ही नॉर्मल है। मैं एकदम खुशहाल शादीशुदा महिला हूँ।जिनके बच्चों की चाहत में मन के किसी कोने में जिजीविषा बची रहती है जो बार बार ये दुहराती हैं अगर मैं मर गई तो मेरे बाद मेरे बच्चों का क्या होगा?हर उस महिला को यह कहानी अपनी कहानी सी लगेगी। बस उनको बचाने वाला कोई अभिज्ञान होना चाहिए जो रोज तिल तिल मर रही होती हैं।


शारीरिक उत्पीड़न कहीं भी प्रेम को जन्म नहीं देता और जरूरी नहीं कि प्रेम के लिए शरीर एक आवश्यक वस्तु हो। sabhar pustak indino Facebook wall

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