अध्यात्म ज्ञान धारण करने का तत्व है हम जितना अध्यात्म को धारण करते जाएंगे उतना ज्यादा ईश्वर का और सत्य का अनुभव करते जाएंगे बिना धारण किए हुए यह ज्ञान हमारे किसी काम का नहीं है ?
जैसे ठंड का महीना चल रहा है हमें ठंडी भी खूब लग रही है और हम कंबल का खूब बखान करें कंबल इतना होता है मोटा होता है बहुत गर्म करता है कंबल उड़ने वाले को ठंड नहीं लगता है कंबल में हाथ पैर साहब सीमेट लेते हैं कंबल का कितना भी बखान कर ले जब तक हम उस कंबल को अपने शरीर पर धारण नहीं करेंगे तब तक उस कंबल का कितना भी बखान कर ले वह हमारे किसी काम का होता नहीं है ठीक उसी प्रकार से ज्ञान जब तक धारण न किया जाए हमारे किसी काम का नहीं है,
कंबल को शरीर पर धारण किया जाता है , और ज्ञान को हमारे अंतःकरण पर ज्ञान रूपी प्रकाश धीरे-धीरे अंतः करण को नया प्रकाश देकर अंधकार रूपी अज्ञान को नष्ट कर देता है जिससे जीवन की सत्यता और सार्थकता का अनुभव होता है ?
इसलिए महापुरुषों ने कहा है बाहर से कितना भी ज्ञान ले लो वह ज्ञान जब तक हमारे अंतःकरण में प्रकट नहीं होगा तब तक बाहरी ज्ञान से काम चलेगा नहीं मनुष्य जीवन के कल्याण के लिए ज्ञान को अंतःकरण में धारण करना ही पड़ेगा
शुद्ध आध्यात्म ज्ञान
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