वास्तव में खजुराहो भारतीय दर्शन कि सम्पूर्ण व्याख्या है।
भारत अपने शास्त्रों से ही नहीं , कला के सभी माध्यमों से धर्म को परिभाषित किया है।
भारत कभी भी निषेध का समर्थन नहीं करता ।
जो निषिद्ध है , उसके पार जाना है।
एक बड़ी प्राचीन कहावत है -
स्वर्ग का रास्ता नर्क से गुजरता है।
नर्क को निषेध नहीं किया गया , उससे आगे बढ़ना है।
क्षत्रियों के दो वंशजों कि अभिव्यक्ति में थोड़ा भेद है।
सूर्यवंशी क्षत्रिय अपनी स्थापत्य निर्माण में धर्म को अभिव्यक्त करने के लिये कला में मर्यादा का अनुसरण किये है।
चंद्रवंशी क्षत्रिय अपने स्थापत्य निर्माण में कला के सभी रूपों को माध्यम बनाये है।
लेकिन संदेश और दर्शन एक ही है।
खुजराहो के मंदिर चन्द्रवंशी क्षत्रियों ने बनाया है। अपनी परंपरा के आधार पर धर्म को व्यक्त करने के लिये, कला के उस स्वरूप को माध्यम बनाया है जिसे मर्यादा के बंधनों से मुक्त रखा गया है।
काम ! भारत मे निषेध नहीं था, हो भी नहीं सकता।
हिंदू दर्शन में काम को एक पुरुषार्थ माना गया है - धर्म , अर्थ , काम , मोक्ष।
अंतिम लक्ष्य मोक्ष ही है।
मोक्ष प्राप्त के लिये काम का निषेध नहीं किया जा सकता। उससे पार जाना होगा।
खजुराहो के मंदिरों की एक विशेषता है।
कामकला को मंदिरों के वाह्य भाग पर दिखाया गया है।
अंदर गर्भगृह में ईश्वर को स्थापित किया गया है।
आंतरिक भाग में एक भी कामकला का चित्रण नहीं है।
वाह्य से अंदर जाने के लिये काम को पार करना होगा !
तभी ईश्वर तक पहुँच सकते है।
खजुराहो के मंदिर हिंदू दर्शन के इसी चिंतन को प्रतिबिंबित करते है। अभिव्यक्ति का माध्यम निर्माण करने वाले चन्द्रवंशी क्षत्रियों की परंपरा है। लेकिन दर्शन वही है, जो उपनिषद कहता है - ईश्वर तक जाने के लिये सांसारिक प्राकृतिक बाधाओं से आगे बढ़ना होगा...
साभार- Ravishankar Singh
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